Wednesday, 15 February 2017

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So Friend's Today  Read About Chittorgarh Fort in Rajasthan India


                              Chittorgarh

चित्तौड़गढ़ राजस्थान का एक शहर है। यह शूरवीरों का शहर है जो पहाड़ी पर बने दुर्ग के लिए प्रसिद्ध है। चित्तौड़गढ़ की प्राचीनता का पता लगाना कठिन कार्य है, किंतु माना जाता है कि महाभारत काल में महाबली भीम ने अमरत्व के रहस्यों को समझने के लिए इस स्थान का दौरा किया और एक पंडित को अपना गुरु बनाया, किंतु समस्त प्रक्रिया को पूरी करने से पहले अधीर होकर वह अपना लक्ष्य नहीं पा सका और प्रचंड गुस्से में आकर उसने अपना पांव जोर से जमीन पर मारा जिससे वहां पानी का स्रोत फूट पड़ा, पानी का यह कुंड भीम ताल कहा जाता है। बाद में यह स्थान मौर्य अथवा मूरी राजपूतों के अधीन आ गया, इसमें भिन्न-भिन्न राय हैं कि यह मेवाड़ शासकों के अधीन कब आया, किंतु राजधानी को उदयपुर ले जाने से पहले 1568 तक चित्तौड़गढ़ मेवाड़ की राजधानी रहा।

यह माना जाता है कि सिसौदिया वंश के महान संस्थापक बप्पा रावल ने 8वीं शताब्दी के मध्य में अंतिम सोलंकी राजकुमारी से विवाह करने पर चित्तौढ़ को दहेज के एक भाग के रूप में प्राप्त किया था, बाद में उसके वंशजों ने मेवाड़ पर शासन किया जो 16वीं शताब्दी तक गुजरात से अजमेर तक फैल चुका था।

अजमेर से खंडवा जाने वाली ट्रेन के द्वारा रास्ते के बीच स्थित चित्तौरगढ़ जंक्शन से करीब २ मील उत्तर-पूर्व की ओर एक अलग पहाड़ी पर भारत का गौरव, राजपूताने का सुप्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ का किला बना हुआ है। समुद्र तल से १३३८ फीट ऊँची भूमि पर स्थित ५०० फीट ऊँची एक विशाल ह्मवेल आकार में, पहाड़ी पर निर्मित्त इसका दुर्ग लगभग ३ मील लंबा और आधे मील तक चौड़ा है। पहाड़ी का घेरा करीब ८ मील का है तथा यह कुल ६०९ एकड़ भूमि पर बसा है।

चित्तौड़गढ़, वह वीरभूमि है, जिसने समूचे भारत के सम्मुख शौर्य, देशभक्ति एवं बलिदान का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। यहाँ के असंख्य राजपूत वीरों ने अपने देश तथा धर्म की रक्षा के लिए असिधारारुपी तीर्थ में स्नान किया। वहीं राजपूत वीरांगनाओं ने कई अवसर पर अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने बाल-बच्चों सहित जौहर की अग्नि में प्रवेश कर आदर्श उपस्थित किये। इन स्वाभिमानी देशप्रेमी योद्धाओं से भरी पड़ी यह भूमि पूरे भारत वर्ष के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर रह गयी है। यहाँ का कण-कण हममें देशप्रेम की लहर पैदा करता है। यहाँ की हर एक इमारतें हमें एकता का संकेत देती हैं।


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 Jaisalmer Fort



जैसलमेर किला थार मरुस्थल के त्रिकुटा पर्वत पर खड़ा है और यहाँ काफी इतिहासिक लड़ाईयां भी हुई है. किले में भारी पीले रंग के बलुआ पत्थरो की दीवारे बनी है. दिन के समय सूरज की रौशनी में इस किले की दीवारे हल्के सुनहरे रंग की दिखती है. इसी कारण से यह किला सोनार किला या गोल्डन फोर्ट के नाम से भी जाना जाता है. यह किला शहर के बीचो बिच बना हुआ है और जैसलमेर की इतिहासिक धरोहर के रूप में लोग उस किले को देखने आते है.

2013 में कोलंबिया, फ्नोम पेन्ह में हुई 37 वी वर्ल्ड हेरिटेज समिति में राजस्थान के 5 दुसरे किलो के साथ जैसलमेर किले को भी यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शामिल किया गया.


जैसलमेर किला 1156 CE में रावल जैसल ने बनवाया था. जैसल गौर के सुल्तान द्वारा बनाये षड्यंत्र में फस गया ताकि वह उसके प्रदेश को अपने भतीजे भोजदेव से बचा सके. किले की एक और महत्वपूर्ण घटना 1276 में घटी जब जेत्सी के राजा ने दिल्ली के सुल्तान से परेशान होकर उसपर आक्रमण किया. 56 दुर्ग की चढ़ाई 3700 सैनिको ने की थी. आक्रमण के 8 सालो बाद सुल्तान की आर्मी ने महल का विनाश कर दिया. उस समय भाटियो ने किले को नियंत्रित किया लेकिन उनके पास ताकत का कोई साधन नही था. 1306 में दोदू द्वारा बलपूर्वक राठौर को बाहर निकालने की बहादुरी के लिये उन्हें ही किले का रावल चुना गया. और तभी से उन्होंने किले का निर्माण करना शुरू किया. लेकिन रावल मुग़ल साम्राज्य के हमलो को सहन नही कर सका और परिणामस्वरूप 1570 में वह अकबर की शरण में चला गया और अपनी बेटी का विवाह भी उससे करा दिया.

मध्यकाल में पर्शिया, अरबिया, इजिप्त और अफ्रीका से व्यापार करते हुए इस शहर ने मुख्य भूमिका निभाई थी. किले में दीवारों की 3 परते है. किले की बाहरी और निचली परत ठोस पत्थरो से बनी हुई है. दूसरी और बिच वाली परत किले के चारो तरह साँप के आकार में बनी हुई है. एक बार राजपुरो दे दीवारों के beech से अपने दुश्मनों के उपर उबला हुआ पानी और तेल फेका था और दूसरी और तीसरी दीवार के बिच उन्हें घेर लिया था. इस प्रकार किले की सुरक्षा के लिये कुल 99 दुर्ग बनाये गये थे जिनमे से 92 दुर्ग 1633 से 1647 के बीच बनाये गये थे.

13 वी शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी ने किले पर आक्रमण किया और उसे हासिल कर लिया और 9 साल तक उसने किले को अपने नियंत्रण में ही रखा. किले की घेराबंदी के समय राजपूत महिलाओ ने अपनेआप को जौहर में समर्पित किया. किले की दूसरी लड़ाई 1541 में हुई थी जब मुग़ल शासक हुमायूँ ने जैसलमेर पर हमला किया था.

1762 तक किले पर मुग़लों का ही नियंत्रण था इसके बाद में किले को महारावल मूलराज ने नियंत्रित किया. किला एकांत जगह पर बसा होने के कारण किले ने मराठाओ के इंतकाम का बचाव किया. पूर्व भारतीय कंपनी और मूलराज के बीच 12 दिसम्बर 1818 को हुए समझौते के कारण राजा को ही किले का उत्तराधिकारी माना गया और आक्रमण के समय उन्हें सुरक्षा भी प्रदान की जाती थी. 1820 में मूलराज की मृत्यु के बाद उनके पोते गज सिंह ने शासन को अपने हाथो में ले लिया.

ब्रिटिश नियमो के आते ही बॉम्बे बंदरगाह पर समुद्री व्यापार की शुरुवात हुई, इससे बॉम्बे का तो विकास हुआ लेकिन जैसलमेर की आर्थिक स्थिति नाजुक होती गयी. स्वतंत्रता और भारत के विभाजन के बाद प्राचीन व्यापार यंत्रणा पूरी तरह से बंद हो चुकी थी. लेकिन फिर 1965 और 1971 में भारत-पकिस्तान युद्ध के समय जैसलमेर किले ने अपनी महानता को प्रमाणित किया था. जैसलमेर किला इतना विशाल है की वहा की पूरी जनता उस किले के अन्दर रह सकती है और आज भी वहा 4000 लोग रहते है जिनमे से बहोत से ब्राह्मण और दरोगा समुदाय के है. ये लोग भाटी शासको की निगरानी में काम करते थे और तभी से वे उसी किले में रह रहे है. लेकिन फिर जैसे-जैसे जैसलमेर की जनसंख्या बढती गयी वैसे-वैसे लोग त्रिकुटा पर्वत के निचे भी रहने लगे थे.

जैसलमेर किले का आर्किटेक्चर – Jaisalmer Fort

यह किला 1500 फीट (460 मी.) लंबा और 750 फीट (230 मी.) चौड़ा है और 250 फीट (76 मी.) ऊँचे पर्वत पर बना हुआ है. किले का तहखाना 15 फीट लंबा है. किले के दुर्ग ने तक़रीबन 30 फीट की एक श्रुंखला बनायी है. शहर से किले के कुल चार प्रवेश द्वार है, जिनमे से एक द्वार पर तोपे भी लगी हुई है –

राज महल (रॉयल पैलेस)
लक्ष्मीनाथ मंदिर
4 विशाल प्रवेश द्वार
व्यापारी हवेली.
राजस्थानी शहरो के धनि व्यापारियों ने बड़ी-बड़ी हवेलियाँ भी बनवायी है. जिनमे से कुछ हवेलियाँ तो एक दशक से भी ज्यादा पुरानी है. जैसलमेर शहर में पीले पत्थरो से बनी ऐसी कई विशाल और सुन्दर हवेलियाँ है. इसमें से कुछ हवेलियों में बहोत सी मंजिले और अनगिनत कमरे भी है, साथ ही हवेलियों की खिडकियों को भी राजेशाही अंदाज़ में सजाया !
     

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So Friend's Today  Read About meharangarh Fort in Jodhpur ,Rajsthan















मेहरानगढ़ किला, जोधपुर

अवश्य जाएँ

मेहरानगढ़ किला एक बुलंद पहाड़ी पर 150 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह शानदार किला राव जोधा द्वारा 1459 ई0 में बनाया गया था। यह किला जोधपुर शहर से सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। इस किले के सात गेट हैं जहां आगंतुक दूसरे गेट पर युद्ध के दौरान तोप के गोलों के द्वारा बनाये गये निशानों को देख सकते हैं। कीरत सिंह सोडा, एक योद्धा जो एम्बर की सेनाओं के खिलाफ किले की रक्षा करते हुये गिर गया था, के सम्मान में यहाँ एक छतरी है। छतरी एक गुंबद के आकार का मंडप है जो राजपूतों की समृद्ध संस्कृति में गर्व और सम्मान व्यक्त करने के लिए बनाया जाता है।

Jai पोल गेट महाराजा मान सिंह द्वारा बीकानेर और जयपुर की सेनाओं पर अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए बनाया गया था। मुगलों के खिलाफ अपनी जीत की याद में एक और गेट फतेह पोल महाराजा अजीत सिंह द्वारा भी बनवाया गया था।
किले की एक हिस्सा संग्रहालय में बदल दिया गया जहाँ शाही पालकियों का एक बड़ा संग्रह है। इस संग्रहालय में 14 कमरे हैं जो शाही हथियारों, गहनों, और वेशभूषाओं से सजे हैं। इसके अलावा, आगंतुक यहाँ मोती महल, फूल महल, शीशा महल, और झाँकी महल जैसे चार कमरे को भी देख सकते हैं।
मोती महल, जिसे पर्ल पैलेस के रूप में भी जाना जाता है, किले का सबसे बड़ा कमरा है। यह महल राजा सूर सिंह द्वारा बनवाया गया था, जहां वे अपनी प्रजा से मिलते थे। यहाँ, पर्यटक 'श्रीनगर चौकी', जोधपुर के शाही सिंहासन को भी देख सकते हैं। यहाँ पाँच छिपी बाल्कनी हैं जहां से राजा की पाँच रानियाँ अदालत की कार्यवाही सुनती थी।
फूल महल मेहरानगढ़ किले के विशालतम अवधि कमरों में से एक है। यह महल राजा का निजी कक्ष था। इसे फूलों के पैलेस के रूप में भी जाना जाता है, इसमें एक छत है जिसमें सोने की महीन कारीगरी है। महाराजा अभय सिंह ने 18 वीं सदी में इस महल का निर्माण करवाया। माना जाता है कि मुगल योद्धा, सरबुलन्द खान पर राजा की जीत के बाद अहमदाबाद से यह सोना लूटा गया था। शाही चित्र और रागमाला चित्रकला महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय के शासनकाल के दौरान महल में लाये गये थे।
शीशा महल सुंदर शीशे के काम से सजा है। आगंतुक शीशा महल में चित्रित धार्मिक आकृतियों के काम को देख सकते हैं। इसे 'शीशे के हॉल' के रूप में भी जाना जाता है। एक तखत विला, जिसे तखत सिंह द्वारा बनवाया गया था, भी देखा जा सकता है। ये जोधपुर के अंतिम शासक और मेहरानगढ़ किले का निवासी थे। विला का वास्तुशिल्प पारंपरिक और औपनिवेशिक दोनों शैलियों को प्रदर्शित करता है।
झाँकी महल, जहाँ से शाही महिलायें आंगन में हो रहे सरकारी कार्यवाही को देखती थीं, एक सुंदर महल है। वर्तमान में, यह महल शाही पालनों का एक विशाल संग्रह है। ये पालने, गिल्ट दर्पण और पक्षियों, हाथियों, और परियों की आकृतियों से सजे हैं।


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So Friend's Today  About Lalgarh Palace
In Bikaner ,Rajsthan





लालगढ़ पैलेस 1902 में राजा गंगा सिंह द्वारा लाल पत्थरों से बनवाया गया था।उन्होंने यह सुंदर महल अपने पिता, राजा लाल सिंह की स्मृति में बनवाया था।यह महल वास्तुकार सर स्विंटन याकूब के द्वारा डिजाइन किया गया है जिन्होंने एक ही मंच पर राजपूत, मुगल और यूरोपीय शैलियों के सहयोग से इमारत के ढांचे को डिजाइन किया।

शानदार और बलुआ पत्थर में चांदी काम महीन महल का प्रमुख आकर्षण है।इस महल के ऊपर की बालकनी बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करती है। मोर नृत्य महल के बगीचे की खूबसूरती को बढ़ाते हैं।बीकानेर शहर इस महल से केवल 3 किमी दूर है। पर्यटक इस महल में 10 से 5 बजे तक पहुँच सकते हैं, इस समय पर परिवहन की सुविधा भी मिल जाती है।


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CHITTORGARH FORT HD WALLPAPERS 1080P

Chittorgarh  (also  Chittor  or  Chittaurgarh ) is a major city and a municipality in  Rajasthan  state of western  India . It lies on the ...